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डोरी पर घर / विवेक चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
आँगन में बंधी डोरी पर
सूख रहे हैं कपड़े
पुरुष की कमीज और पतलून
फैलाई गई है पूरी चैड़ाई में
सलवटों में सिमटकर
टंगी है औरत की साड़ी
लड़की के कुर्ते को
किनारे कर
चढ़ गई है लड़के की जींस
झुक गई है जिससे पूरी डोरी
उस बांस पर
जिससे बांधी गई है डोरी
लहरा रहे हैं पुरुष अंतःवस्त्र
पर दिखाई नहीं देते
महिला अंतःवस्त्र
वो जरूर छुपाए गए होंगे
तौलियों में।