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ड्राईंग / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
उसकी नन्ही सी दो आँखे
चमक उठती है देखकर
तस्वीरों की किताब,
लाल पीले हर नीले
सभी रंग लुभाते हैं उसे
पर माँ क्यों थमा देती है
अक्सर काला तवा
जब लौट कर आती है
बड़ी कोठी के काम
से थककर,
और वो निर्विकार बनाती है
नन्हे हाथों से
कच्ची रोटी पर ड्राईंग
माँ से नज़र बचाकर