भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढकमक वाग / दुर्गालाल श्रेष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भँगेराको चिर्चिर चिर्चिर
कागको का द्र का द्र,
त्यसमाथि झन् घुघुर्र घुघुर्र
परेवाको आहा !

सबै मिली यति मीठो
बन्यो यौटा राग,
सररर पुछियो है
पवनकै दाग !

लत्रिएझैं इन्द्रेणीको
एकटुक्रा भाग,
थरी-थरी फूल आहा !
ढकमक वाग !