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ढपलू जी रोए आँ... ऊँ ! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
ढपलू जी स्कूल गए,
बस्ता घर पर भूल गए;
मैडम ने आकर डाँटा,
मारा हल्का-सा चाँटा;
ढपलू जी रोए आँ...ऊँ !
मैं ’ईछकूल’ नहीं जाऊँ ।
ढपलू जीब ैठे खाने,
कच्ची मक्की के दाने;
खा कर पेट लगा दुखने,
चेहरा खिला लगा बुझने;
ढपलू जी रोए आँ...ऊँ !
मैं ये भुत्ता न खाऊँ ।
ढपलू जी ने ढम-ढम कर,
ताल बजाया ढोलक पर;
मम्मी आई, खींचे कान,
बोलीं- ’शोर न कर शैतान !’
ढपलू जी रोए आँ... ऊँ- !
मैं इछ धोलक पल गाऊँ ।