ढल जायेगा विश्व तुम्हारा / रंजना वर्मा
मेरे अश्रु बहेंगे प्रियतम जब-जब तेरी स्मृति में।
ढल जाएगा विश्व तुम्हारा नयनों की उस संसृति में॥
तुम निष्ठुर हो प्रस्तर प्रतिमा
प्रस्तर में जल धार कहाँ
टकराती में शिला खंड से
हिम के उर में प्यार कहाँ।
तन की आँच तुम्हें सौंपू तो गल जाओगे विस्मृति में।
ढल जायेगा विश्व तुम्हारा नैनों की उस संसृति में॥
श्रद्धा के दो फूल चढ़ाये
माना तुम्हें देवता मन का,
पर तुमने उपहास किया है
मेरे निश्छल आराधन का।
अब इस तन की जला आरती तुम्हें पुकारूं इंगिति में।
ढल जायेगा विश्व तुम्हारा नयनों की इस संसृति में॥
अश्रु बिंदु ये नहीं रक्त
बूंदें हैं मेरे अरमानों की,
हर उमंग को कफन उढ़ा कर
न दो दुहाई उपधानों की।
चिता जलेगी मेरी तो तुम तड़प उठोगे विधि गति में।
ढल जायेगा विश्व तुम्हारा नयनों की उस संसृति में॥