ढह गई मीनार हाथीदांत की!
धूल में लिपटे हुए
थर्रा रहे घायल कंगूरे
रंग-उतरे हाशियों में
कांपते किस्से अधूरे
याद आई बात आधी रात की!
उड़ गईं किरचें हवा में
कांच की मेहराब टूटी
एक चुप्पी धर गई
पीछे कही आवाज छूटी
सरसराहट रह गई हिमपात की!
एक भीनी गंध का
मुरझा गया हंसता कमल-वन
थकी बंदनवार से
फिर पूछता खामोश बंधन
कहां खोईं खुशबुएं अहिवात की!