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ढाई आखर / पुष्पिता
Kavita Kosh से
कबीर का ढाई आखर
समुद्र तट पर
साथ-साथ
लिखने के लिए
चुना है तुम्हें
जैसे कोरा सफ़ेद कागज।
पूर्णिमा की चाँदनी
अपनी आँखों से
तुम्हारे ह्रदय की आँखों में
रखने के लिए
नए सपनों ने
चुना है तुम्हें।
प्रणय का पिघलता ताप
हथेली का दमकता आर्द्र अमृत
तुम्हारी हथेली में
रखने के लिए
चुना है तुम्हें
जैसे आत्मा के सहचर हो तुम।