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ढूँढ रहा है चंद्र, चांदनी / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
रवि प्रकाश को ढूँढ रहा है
ढूँढ रहा है चंद्र, चांदनी
तारों में अब चमक नहीं है
निशा-कुसुम में गमक नहीं है
पायल की आवाज खो गई
अब पाँवों में धमक नहीं है
ढूँढ रहा है राग, रागिनी
रवि प्रकाश को ढूँढ रहा है
ढूँढ रहा है चंद्र, चांदनी
धरा पूर्ण रसहीन हो गई
पंछी बन कर मीन खो गई
तरु में पत्ते एक ना बचे
भू की ताकत क्षीण हो गई
प्रेम-हीन हो गई संगिनी
रवि प्रकाश को ढूँढ रहा है
ढूँढ रहा है चंद्र, चांदनी
स्वप्न सभी के बिखर गए हैं
दृष्टिपंथ में नहीं नए हैं
नहीं आस वापस आने की
झूठ बोलकर सभी गए हैं
पर सबकी बातें लुभावनी
रवि प्रकाश को ढूँढ रहा है
ढूँढ रहा है चंद्र, चांदनी