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ढूंढती है ज़िंदगी / संतोष श्रीवास्तव

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पिता थे तो साथ थी
घने बरगद की छाँव सिर पर
हमेशा बरसता था नेह का नूर
 
सजा रहता था माँ का हर पहर
माँ के हाथों के कंगन थे पिता
सिन्दूर,मेंहदी, बिछुआ,पायल थे पिता
नेग, दस्तूर और त्योहार थे पिता
 
चौके चूल्हे की बहार थे पिता
नही लगता था हमको डर किसी से
अभावों में भी खुशियाँ थीं हमेशा
पिता पुचकार लेते थे
भरोसा हमको देते थे
 
नही वाकिफ थे हम मजबूरियों से
कि आँसू वे हमारे
झेल लेते थे हथेली पर
 
सोख लेते थे वो खारापन
गलाकर खुद को
धरते थे हथेली पर
सुखों के कई सारे पल
 
पिता थे था हमारे साथ जीवन
जिसे अब ढूँढती है ज़िन्दगी