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ढूंढते हम जिसे किताबों में / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ढूंढते हम जिसे किताबों में
वो सबक़ इश्क़ के रिसालों में
लग है जाती दुआ बुजुर्गों की
अब नहीं है असर दवाओं में
मंदिरों मस्जिदों में क्या ढूँढें
रब तो बसता है अब सदाओं में
जिंदगी ख़्वाब जगी आँखों का
खो न जाना इन्हीं बहारों में
पत्थरों में तलाशते हो ख़ुदा
वो है इंसान की कतारों में
खून ही सिर्फ़ है बहा करता
मज़हबों की खिंची दिवारों में
साँवरे पार लगा दे कश्ती
तू ही है नाखुदा हज़ारों में