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ढूंढ रहा हूँ / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
जब से हम सभ्य हुए
बस तब से ही
ढूंढ रहा हूँ
उस आदमी को
जो अपने बीच कही
किसी शहर किसी गाँव में
गुम हो गया है
बाज़ार में