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ढूकी खंख / ओम पुरोहित कागद
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ऐ च्यार ढिगळ्यां
माटी री
ढिगळ्यां बिचाळै
नर कंकाळ।
ढिगळ्यां नीं
मांची रा पागा है
इण मांची माथै
सूत्यो हो
कोई बटाउ
उडीकतो
मनवार री थाळी नै
मनवार रै हाथां सूं पै’ली
ढूकी खंख आभै सूं
जकी उठाई है
आज आप
आपरै हाथां
पण परोटै कुण?