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ढेंकुरुस / मणिका दास

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ढेंकुरुस गीत समेट कर
तू लोककथा बन जाएगी
तो क्या आएगा अभिमानी सावन
दूसरे के आँगन में न ले जाने पर तुझे
सूखे खेत क्या हर हो पाएँगे

दादी के पैरों के सं-संग
नाचती थी तू
मा~म की कमर के इर्द-गिर्द
सलवटें दौड़ाती थी तू

ढेंकु !
तेरे पास आने की मुझे फुरसत नहीं मिली
कल मैं जहाँ जाऊँगी
वहाँ है क्या
तेरे लिए जगह !

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार