भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढोला मारूनी दोनों बातां नी लागे / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ढोला मारूनी दोनों बातां नी लागे
थारे पीहर में गोरी धन! कौन पियारा
नींबू पाकन लागे।
एक पियारा अपना बाबुल भी कहिये
दूजी तो पियारी मेरी लाड लडन्ती माय
एक पियारा मुझे अपना बीरन लागे
दूजी दुलारी हमें लाल भवजिया
नींबू पाकन लागे।
इन रे बातों गोरी धन खारी भी लागी
देंगे तुम्हें मन से बिसार
फूल फूलन लागे।
ढोला मारूनी दोनों बातां नी लागे
ससुराल में गोरी धन कौन पियारा
नींबू पाकन लागे।
एक पियारा हमें सौहरा जी कहिये
दूजी पियारी हमें सास सपूती जी
फूल फूलन लागे।
एक पियारी हमें अपनी नन्दल लागे
दूजा प्यारा हमें नन्दी का बीर
फूल फूलन लागे।
इन बातों में गोरी हमें प्यारी भी लागे
देंगे तुम्हें अगड़ घड़ाय
फूल फूलन लागे।