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ढोल बाजे दुअरा, धमस आबे अँगना / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
बेटी की विदाई के पहले ‘घोघटा’ की विधि संपन्न की जा रही है। बाजे बज रहे हैं, जिसकी आवाज मंडप पर भी आ रही है। बेटी अपनी विदाई की बेला में अपने परिवार के लोगों से बिछुड़ने के दुःख से दुखी है। उसकी आँखें गंगा-जमुना हो रही हैं, फिर भी विधि संपन्न करने के लिए दुलहे का आह्वान किया जा रहा है।
ढोल बाजे दुअरा, धमस<ref>धमाका; बाजे पर आघात करने के बाद निकला ाहुआ स्वर</ref> आबे अँगना।
आब<ref>आओ</ref> बने<ref>दुलहा</ref> आब बने, आब मोर अँगना॥1॥
लाड़ो<ref>लाड़ली; दुलहन</ref> के सुरति देखि उमड़लै जमुना।
आब बने आब बने, आब मोर अँगना।
ढोल बाजे दुअरा, धमस आबे अँगना॥2॥
शब्दार्थ
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