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तंग चादर भी ओढ़ लेता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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तंग चादर भी ओढ़ लेता है
जिस्म अपना मरोड़ लेता है
उसकी गहराइयों को देखा है
वो समुन्दर से होड़ लेता है
छोड़िए भी मेरे फ़साने को
सब के आँसू निचोड़ लेता है
फाँस कोई ज़रूर है दिल में
साँस वो छोड़-छोड़ लेता है
ज़िन्दगी के सफ़र को क्या कहिए
गाम-दर-गाम मोड़ लेता है
लोग सो जाएँ पाँव फैला कर
ख़ुद को इतना सिकोड़ लेता है