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तअबीरों से डर जाएंगे / नासिर परवेज़

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तअबीरों से डर जाएंगे
ख़्वाब आंखों में मर जाएंगे

शाम ढले बाहर निकले हैं
दिन निकलेगा, घर जाएंगे

शेअर पढ़ोगे और रोओगे
हम कुछ ऐसा कर जाएंगे

मेरे लबों का लम्स मिलेगा
तेरे गाल निखर जाएंगे

ये माना दस्तार बचेगी
लेकिन कितने सर जाएंगे

तुझ बिन भी सांसें चलती हैं
सोचा था हम मर जाएंगे

घर से दफ़्तर, दफ़्तर से घर
और फिर इक दिन मर जाएंगे

तुग़यानी आने दो नासिर
हम दरिया में उतर जाएंगे