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तकती रहती है सूए-दर मुझको / ईश्वरदत्त अंजुम
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तकती रहती है सूए-दर मुझको
यूँ भी करती है शब बसर आंखें
आंख से वो नज़र नहीं आता
देखना है तो बन्द कर आंखें
वो तो रहता है मेरे दिल में जिसे
ढूंढ़ती हैं इधर उधर आंखें
वो तिरे इंतज़ार का आलम
हो गयीं संग, सर-बसर आंखें
वक़्ते-रुख़्सत नमी सी आंखों में
लोहे-दिल ओर नक़्श तर आंखें
मौसमे-बरशगाल हो जैसे
ऐसे बरसी हैं टूट कर आंखें
उस के जल्वों की ताब ला न सकीं
हो गयीं मेरी बे-बसर आंखें
किस को अब ढूंढती हैं ऐ 'अंजुम'
कुल ज़माने से बे-ख़बर आंखें।