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तकला पर मोसकिलसँ भेटत एहि जगमे इन्सान / बाबा बैद्यनाथ झा

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तकला पर मोसकिलसँ भेटत एहि जगमे इन्सान
हम ककरा पर विश्वास करू आ के अप्पन के आन

एखन समाजमे मात्र रुपैया मातु-पिता, भगवान
स्वार्थ-सिद्धिमे विघ्न पड़ल आ दुश्मन भेल संतान

पहिल भेँटमे जे क्यो लागय शिष्ट, सुशील, दयालु,
मुदा बादमे भेद खुलय तँ ओ कातिल, बैमान

अपन स्वार्थ लए जे क्यो बाजय मिसरी घोरल बोल
काज ससरिते ओ तखने सँ छोड़य व्यंग्यक बाण

मुँहमे राम बगलमे छूरी के साधू के चोर
जँ चपेटमे पड़ि गेलहुँ तँ आफतमे पुनि जान

अछि अश्लील मनोरंजनमे रत निशिदिन सभ लोक
जँ मंगल हित काज करू क्यो होयत बड़ व्यवधान

देखि प्रपंच जगतकेर बंधु आतुर भऽ गेल मोन
समय काटि रहला अछि ‘बाबा’ भऽ कऽ अन्तर्ध्यान