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तकलीफ़ / जया जादवानी
Kavita Kosh से
मैं उसे पीठ पर बिठा कई दिनों
घुमाती रही लगातार
बहुत दिनों बाद आई थी वह
अचानक झपट्टा मार सवार हुई इस तरह
कि जान छुड़ाना जी का जंजाल हो गया
पीठ धनुष हुई जा रही
छूट ही नहीं रही किसी निशाने पर वह
आख़िर थककर उछाल दिया ज़मीन पर
घिसटती रही देर तक पैर पकड़े-पकड़े
गुज़र रही हूँ मैं कई दिनों से
नज़र उसकी बचाए
डर है उसे भी कि भुला ही न दी जाए
हम दोनों एक ही घर में रहते हैं
हमारे बीच अबोला है
बरसों से...।