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तक़दीर से कुछ और न हादी से हुआ / रमेश तन्हा

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तक़दीर से कुछ और न हादी से हुआ
कब कोई बड़ा अपनी मुनादी से हुआ
तदबीरें तो सब सोच के काग़ज़ पे रहीं
जो भी हुआ क़ुव्वते-इरादी पे हुआ।