भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तजी हास राधे / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सरित कूल बैठी मिलन आस राधे।
जगत के खिवैया मिटा प्यास राधे।
महल छोड़ मीरा भटकती सघन वन,
बनी श्याम जोगन तजी हास राधे।
कहाँ हो कहाँ गोपिका के मुरारी,
नयन ढूँढते चहुँ विकल रास राधे ।
बँधी डोर जन्मों जनम से सँवरिया,
मिलूँ इक जनम में बनूँ दास राधे ।
बसे हिय सदन में तुम्हीं श्याम सुंदर,
मिला प्रेम अनुपम बनी खास राधे ।