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तज्दीद-ए-रवायात-ए-कोहन करते रहेंगे / ज़ाहिद
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तज्दीद-ए-रवायात-ए-कोहन करते रहेंगे
सर मारका-ए-दार-ओ-रसन करते रहेंगे
वो दौर-ए-ख़िज़ाँ हो के बहारों का ज़माना
हम याद तुझे जान-ए-चमन करते रहेंगे
रंगीन तेरे ज़िक्र से हम शेर ओ सुख़न को
ऐ जान-ए-सुख़न मरकज़-ए-फ़न करते रहेंगे
इस आबला-पाई पे भी हम तेरी तलब में
तय जादा-ए-आलाम-ओ-मेहन करते रहेंगे
दुनिया हमें दीवाना समझती है तो समझे
हम आम ग़म-ए-दिल का चलन करते रहेंगे
जलते हैं जिसे सुन के अँधेरे के परस्तार
हम आम वही तर्ज़-ए-सुख़न करते रहेंगे
गुलशन में न हम होंगे तो फिर सोग हमारा
गुल-पैरहन ओ ग़ुंचा-दहन करते रहेंगे
'ज़ाहिद' बे-ताक़ाज़ा-ए-वफ़ा तरह-ए-यक़ीं पर
हम कोशिश-ए-तामीर-ए-वतन करते रहेंगे