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तड़पाबै छौं / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।
की सौतिन संग रंगोली में नाचै, कूदै, गाबै छैं?
सौंसे रात पपीहा बोलै,
दिनभर कूकै कोइलिया।
ढोलक झाल मंजीरा सुनिकेॅ
हम्में पगली बाबरिया।
सावन सुनसुन, आसिन गुमसुम, फागुन में तड़पाबै छौं।
हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।
कलकतिया साजन केॅ साथें,
सखी सहेली नाचै छै।
रात-रात भर कथा कहानी-
रंग बिरंगरॅ बाँचै छै।
एक अभागिन हम दुनिया में ममता नैं उसकाबै छौं।
हो देवर जी! फोन लगाबॅ भैया घोॅर नैं आबै छौं।
-मुक्त कथन, वर्ष-34, अंक-29, 07 मार्च, 2009