भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ततैये को छेड़ा / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
ततैये को छेड़ा, ततैये ने काटा,
हुआ कुछ नहीं किन्तु मुन्ने को घाटा।
जहाँ पर भी काटा, वहीं है मुटापा,
चिढ़ाती है मम्मी, मनाते हैं पापा।
ततैया न काटे, ततैये से बचना,
कि दीदी न डाँटे, ततैये से बचना।