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तथागत तुम क्यों मुस्कराए? / असंगघोष

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ओ! गांधारकला की मूर्तियो
तुम्हारे वजूद पर
सब तरफ
अब हमले होने लगे हैं
बामियान का बुद्ध
आग के गोलों की मार से
खण्ड-खण्ड हो
बिखर गया है

यह देख
मेरा लहू खौलता है
तथागत!
जिसे देखकर भी
तुम चुप हो?
तुम्हारी अहिंसा
करुणा फिर दाँव पर है
और तुम हो
कि मुस्करा रहे हो
भंते!
गांधार के बाद मथुरा
मथुरा के बाद अमरावती
और अमरावती के बाद?
पोखरण!
पोखरण के काँपते ही
तुम्हारी मुस्कराहट के साथ
खत्म होती जाएँगी
तुम्हारी शिक्षाएँ ओ’ सभ्यता?

मेरी मानो
भंते!
तुम अब बार-बार
मुस्कराना छोड़ दो
तुम्हारे पीछे
एक अकेला मैं ही नहीं
पूरा समुदाय है
वादा करो
अब इस तरह नहीं मुस्कराओगे!