भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तथास्तु / अरुण चन्द्र रॉय
Kavita Kosh से
ईश्वर ने
पत्थर बनाए और उनमें भर दी दृढ़ता
फिर उसने बनाईं नदियाँ और उनमे भर दी चंचलता
ईश्वर ने बनाया वृक्ष और उनके भीतर भर दिया हरापन
उसी ईश्वर ने बनाई मिटटी और धीरज भर दिया उसके कण-कण में
ईश्वर ने ही बनाया अग्नि को और उसमे भरा तेज़
फिर ईश्वर ने पत्थर से ली उधार दृढ़ता,
नदी से चंचलता,
वृक्ष से हरापन,
मिटटी से धीरज
और अग्नि से तेज़
और बनाया स्त्री को
ईश्वर ने
उसके रोम-रोम में भर दिए
करुणा और प्रेम
फिर ईश्वर
तथास्तु कहकर चला गया पृथ्वी से
स्त्री के बाद कुछ और शेष नहीं सृष्टि में !