तनल रहो / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
याद करो, इनकिलाव कैला हे,
दुस्मन से लडें ले
झंडा उठैला हे
तोहीं अप्पन खून से
रंगला हे देस के,
खाक तो छानला हे
देस अउ विदेस के
माथा पर दुस्मन के
तरे-तरे खोर देला
दुस्मन के ताकत तो
पल भर में तोड़ देला
लेकिन अब की होलो
हवा में उड़ऽ हा,
चुल्लू भर पानी में
नाक तक बुड़ऽ हा
ऊ तो विदेसी हलो
जेकरा भगैला तों,
घर के दुस्मन के
जान के जगैला तों
इहे तो दुस्मन हलो
तेखनौ उजाड़ऽ हलो,
पाया में बांध के
चाभुक से मारऽ हलो
छीन ले हलो खेत से
चौकी भर ककड़ी,
खोल के ले जा हलो
बैल अउ बकरी
लोटा अउ थारी
उठैलको हे उहे,
धन तोहर आय तक
चोरैलको हे उहे।
ओकरे कहऽ हा तों
बड़ी देसभक्त हे,
बोलो नै खिलाफ ओकर
कानून भी शख्त हे
चू नै बोलै के
सख्त मनाही हे,
किसान मजदूर तो
राहे के राही हे
राहे राह
जान तो गमाबो नै हो, भाय हो
तनल रहो
मूड़ी नै नवाबो हो भाय हो।