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तनहा होकर जो रो लिए साहब / अब्दुल मजीम ‘महश्र’
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तनहा होकर जो रो लिए साहब
दाग़ दामन के धो लिए साहब
दिल में क्या है वो बोलिए साहब
आगे पीछे न डोलिए साहब
उन गुलों का नसीब क्या कहना
तुमने हाथों में जो लिए साहब
तारे गिन गिन सुबह हुई मेरी
रात भर आप सो लिए साहब
उनके दर का भिखारी है ‘महशर’
उसको फूलों से तोलिए साहब