भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तनि अइहऽ चंदनिया के साथे / शेष आनन्द मधुकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तनि अइहऽ चंदनिया के साथे,
अंगनवाँ के ताजमहल में।

कुहु-कुहु कर के कुढ़ावइ कोइलिया,
घउआ पर नून नियन ननदी के बोलिया।

उमगल जवनियाँ पिरितिया से,
रहलइ हे केकर कहल में।

रोज रोज आ के सतावइ चननियाँ,
अंगना में आ के चिढ़ावइ सउतनियाँ।

फूट जाये चूड़ी सुहागन के,
जइसे कि तीज सहल में।

केत्ता अगोरबऽ परदेस के दुअरवा,
घर आवऽ हुलस जइतइ झुलसल अँचरवा।

तोरे किर, रहबो, दिन रात लगल,
तन मन से, तोरे टहल में।

मौसम पढ़ऽ हली आँख में,
बिंदिया के चान लिलार पर।
सूतल रही या जगल रही,
रहे धेयान बंद किवाड़ पर।

तूँ चान सुरुज नऽ हलऽ,
हलऽ एक जोत अन्हार में।