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तनि एक अइपन लिखलूँ हम कोहबर / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तनि एक<ref>थोड़ा-सा</ref> अइपन<ref>चावल को पीसकर तथा उसमें हल्दी मिलाकर तैयार किया गया घोल, जिससे चौका चित्रित किया जाता है। इसी घोल को ‘ऐपन’ कहते हैं।</ref> लिखलूँ हम कोहबर।<ref>वह गृह, जो खासकर दुलहे-दुलहिन के लिए सजाकर रखा जाता है और जिसमें दुलहे-दुलहिन से कुछ विधियाँ सम्पन्न कराई जाती हैं तथा उन्हें सोने के लिए भी वही घर दिया जाता है।</ref>
ताहि पइसी<ref>प्रवेश कर</ref> सुतलन<ref>सोये</ref> दुलहा दुलरइता दुलहा।
जबरे<ref>साथ में</ref> दुलहिनियाँ सुघइ<ref>सुगृहिणी, सुन्दरी</ref> साथे हे हरी।
लिखलूँ हम कोहबर<ref>कोहबर लिखना = कोहबर-घर में दीवाल पर, विधि-विधान तथा कुल-परंपरा के अनुरूप अनेक प्रकार के मांगलिक चित्र बनाना</ref> मनचित लाय हे हरी॥1॥
एक पहर बितलइ, दोसर पहर बितलइ हे।
भे गेलइ<ref>हो गया</ref> फरिछ<ref>साफ, स्वच्छ</ref> बिहान<ref>भोर</ref> सुरुज किरिन छिटकल हे हरी॥2॥
दादी जे पइसी कोहबर दुलहा जगावे हे।
भे गेलो फरिछ बिहान, सुरुज किरिन छिटकल हे हरी॥3॥
उठि उठि जगबथि राम के सीता देइ हे।
उठूँ परभु<ref>प्रभु, स्वामी</ref> भे गेलो बिहान, उठहुँ परभु कोहबर हे हरी॥4॥
हम तोहिं पूछूँ हे सीता देइ दुलहिन हे।
कइसे चिन्हलऽ<ref>पहचाना</ref> भे गेलो बिहान, कहहु सिरी राम हे हरी॥7॥
भेल फरिछ परभु, कउआ<ref>काक, कौआ</ref> डार बोले जी।
गउआ दुहन घर घर आवे, सुनहु मोर सामी हे हरी॥6॥
मोर माँगे मोतिया सभ परभु बदरंगे भेल।
एही से<ref>इसी से</ref> चिन्हलूँ भेल बिहान, उठहु रघुनन्नन हे हरी॥7॥

शब्दार्थ
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