तनुकु द्याखउ तउ! / पढ़ीस
तुम मनई हउ घनई !
फिरि का बिपदा बनई ?
जागि उठउ करउ चेतु,
न अउँघाउ<ref>ऊँघने के अर्थ में, आधा सोना-आधा जागना</ref> न अकुलाउ<ref>ऊबना</ref>,
तनुकु भाखउ तउ ।
तनुकु द्याखउ तउ !
तुमरे लरिका बिटिया,
तुमरे बछिया पँड़िया,
तुमरइ बर्द्धउ बधिया,
हयि ख्यातउ खरिहानु
तनुकु जानउ तउ ।
तनुकु मानउ तउ !
लावा को महिमा हयि,
स्वाचउ को केहिका हयि ?
घरू जिहिका तिहिका हयि
को घेरि घेरि घुसा
तनुकु द्याखउ तउ !
तनुकु भाखउ तउ ।
तुमरे घर की माया
ठलुहा लयि लयि भाजयिं !
यी घास की कुटकुटी<ref>झोपड़ी, अस्मिता</ref>
का ह्वयि रहा भिंजारू,
तनुकु जानउ तउ ।
तनुकु मानउ तउ ।
जी जनम के उठल्लू
ती आजु बड़े पंडित !
जौनी पतरी चाटयिं
तिनहे मँ करियं छेदु
तनुकु जानउ तउ ।
तनुकु मानउ तउ ।
जो तुमरे घर आवा
बुहु तुमहे तुम ह्वयि गा,
अब तनुकु न अरसाउ<ref>आलस्य करना</ref>
न बिल्लाउ न चिल्लाउ
तनुकु मानउ तउ ।
तनुकु जानउ तउ ।
तुम घरहे की भाँसड़ि<ref>झंझट, फूट</ref>
मा ह्वयि रहे द्यवाने;
सब कयि रहे बिलय्यन
बँदरऊ क्यार बाँटु,
तनुकु द्याखउ तउ !
कुछउ भाखउ तउ ।
तुम हिंद के पुजारी,
उयि पादरी कि मुल्ला !
जो द्यास केरि स्वाचउ
तउ हउ बड़े ‘‘पढ़ीस’’
अब न माखउ तउ !
तनुकु द्याखउ तउ !