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तनै घणी सताई क्यों / रणवीर सिंह दहिया

तनै घणी सताई क्यों बाट दिखाई जमा निस्तरग्या निरभाग
बोल्या बैठ मुंडेरे काग।।

के बेरा तनै पिया जी मैं दिन काटूं मर पड़कै हो
परेशानी दिन रात रहै मैं रोउं भीतर बड़कै हो
तेरी फौज की नौकरी दखे कुणक की ढालां रड़कै हो
राम जी नै किसा खेल रचाया सोचूं खाट मैं पड़कै हो
कद छुट्टी आवै, मेरी आस बंधावै जो चाहवै मेरा हो सुहाग।।
भूखी प्यासी रहकै घर मैं उमर गुजारुं फौजी मैं
सपने के म्हां कई बै देकै बोल पुकारुं फौजी मैं
निर्धनता बीमारी का क्या जतन बिचारुं फौजी मैं
तीर मिलै तो तुक कोन्या कित टक्कर मारुं फौजी मैं
रोज खेत कमाउं, बहोतै थक ज्याउं, रात की नींद मेरी जा भाग।।
ज्यान बिघन मैं घलगी वुफएं जोहड़ मैं मनै मरना हो
तेरी प्यारी प्रेम कौर नै ज्यान का गाला करना हो
तेरी पलटन के कारण मैंने दुख बहोत घणा भरना हो
आजादी मेरी शैतान होगी नहीं किसे का सरना हो
यो अफसर तेरा, हुया बैरी मेरा, ईंकै लड़ियो जहरी काला नाग।।
हार चाहे हो जीत म्हारी मैं कोन्या त्यार मरण खातिर
सहम भरमते पषु फिरैं तेरा सुन्ना खेत चरण खातिर
कदे तो थोड़ा बख्त काढ़ लिये मनै याद करण खातिर
एक बर तो छुट्टी आज्या तूु मेरा पेटा भरण खातिर
लिखै रणबीर, ईब तेरी तहरीर, करै दुनिया के म्हां जाग।।