तनै जिसके ना पै धन लुटवा दिये / कृष्ण चन्द
तनै जिसके ना पै धन लुटवा दिये छोड़ अमीरी ठाठ पिता
वो कृष्ण छलिया सुण्या मनै तूं किसकी देखै बाट पिता
गोकुल गढ़ मैं नन्द बाबा कै जाकै गऊ चराई
माखन मिश्री दही खोस कै घर अगह्र मांह तै खाई
सतभामा कालन्दी कृष्णा छ्ल से सुभदरा ब्याही
छल से रुकमण हरी जिनै वा भीम सेन की जाई
रुकमण मार कै लई बुराई कुणसी घाली घाट पिता
एक श्रामपंत मणी की खातिर घर्म कर्म सब हार दिया
मथुरा के म्हां कंस सुण्या खुद मामा का सिर अतार दिया
पीठ दिखा कै भाज्या रण तैं बिल्कुल कर लाचार दिया
फेर ब्राह्म्ण बण कै गए मघद मैं सारा मान बिसार दिया
धोखा दे कै मार दिया वो जरासिन्ध सम्राट पिता
धर्म युधिष्ठर झूठ बोल कै खो सारा विश्वास गया
दुर्योधन तै दगा करी जब गान्धारी के पास गया
धोखा देकै कर्ण मार दिया मिल अर्जुन नै सांस गया
ठारा अक्षोणी दल खपगे इस भारत का रंग रास गया
छत्री कुल का नाश गया मचया चोगरदे कै करळाट पिता
कहै “कृष्ण चन्द” सिसाने आळा तनै धूप गिणी ना चाया
इस कृष्ण के छळ म्हं आकै लुटवा दी धन माया
सुध बुध भूल गया इस तन की और ना काबू मैं काया
जो गैर के बदले सिर देदे इसा कोण जगत मैं पाया
वो ब्राह्म्ण बनकै घर पै आया सुकी देगा डाट पिता