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तन्द्रिल निशीथ में ले आये / महादेवी वर्मा

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तन्द्रिल निशीथ में ले आये

गायक तुम अपनी अमर बीन!
प्राणों में भरने स्वर नवीन!

तममय तुषारमय कोने में
छेड़ा जब दीपक राग एक,

प्राणों प्राणों के मन्दिर में
जल उठे बुझे दीपक अनेक!

तेरे गीतों के पंखों पर
उड़ चले विश्व के स्वप्न दीन!

तट पर हो स्वर्ण-तरी तेरी
लहरों में प्रियतम की पुकार,

फिर कवि हमको क्या दूर देश
कैसा तट क्या मँझधार पार?

दिव से लावे फिर विश्व जाग
चिर जीवन का वरदान छीन!

गाया तुमने ‘है सृत्यु मूक
जीवन सुख-दुखमय मधुर गान’,

सुन तारों के वातायन से
झाँके शत शत अलसित विहान

बाई-भर अंचल में बतास
प्रतिध्वनि का कण कण बीन बीन।

दमकी दिगन्त के अधरों पर
स्मित की रेखा सी क्षितिज-कोर,

आ गये एक क्षण में समीप
आलोक-तिमिर के दूर छोर!

घुल गया अश्रु अरुण में हास
हो गई हार में जय विलीन!