भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तन्हाई / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
माँ के आंचल में
तन्हाई का गीत पलता है
क्योंकि,
दरवाजे से लेकर पूरे गांव में
सवर्णों के खेत व खलियान मंे
पंचायत के सामने ही
उसकी बेटी को घुमाया जाता हे
शराब का नशा बताया जाता है
गांजे की चिलम में जलाया जाता है
और कहा जाता है कि
तुम स्वर्ग की परी हो
मोतियों की लड़ी हो
कश्मीर की वादी हो
जिस्म की फ़ौलादी हो
चार बेटियों के बाप भी
अपनी हवस1 को आग देते हैं
मूंछों पे ताव देते हैं
आंखों में सपने संजोते हैं
ऊपर से नीचे तक घूरते हैं
उनकी बीबियां अपने पति को
जब दलितों की बेटी को
खिड़कियों से देखती हैं
घूरते हुए बोलती हैं
हमारे सामने ऐसा होगा क्या?
नीच जाति गंदे भी सर उठायेंगे
हम लोगों से भी जबान लड़ायेंगे
तो फिर ऐसे ही ये कूटे जायेंगे!