तन्हा-तन्हा इन राहों में आये थे/ विनय प्रजापति 'नज़र'
लेखन वर्ष: 2001-2002
तन्हा-तन्हा इन राहों में आये थे
तन्हा-तन्हा इन राहों से जायेंगे
क़िस्मत से क्या लेकर आये थे
क़िस्मत को क्या देकर जायेंगे
आज हूँ मैं यहाँ इन सरहदों पर
कल कहीं और परदेस में हूँगा
तन्हा चलने की आदत है मेरी
तन्हा ही मंज़िल को ढूँढ़ लूँगा
वक़्त ने जो दिखाई है राह मुझको
उस पर ही बढ़ता चला जाऊँगा
मेरे साथ यह कुछ ख़ाब आये थे
मेरे साथ यह कुछ ख़ाब जायेंगे
तन्हा-तन्हा इन राहों में आये थे
तन्हा-तन्हा इन राहों से जायेंगे
उजालों के लिए सफ़र करता हूँ
अंधेरों की सिफ़र में भटकता हूँ
हाथ थामके दिन सूरज दिखाता है
रात का साया चाँदनी चुराता है
ढलती शाम पहुँचे थे यहाँ तक
सुबह होते यहाँ से चला जाऊँगा
हम यहाँ ख़ुद को ढूँढ़ने आये थे
हम यहाँ ख़ुद को भूलके जायेंगे
क़िस्मत से क्या लेकर आये थे
क़िस्मत को क्या देकर जायेंगे
तन्हा-तन्हा इन राहों में आये थे
तन्हा-तन्हा इन राहों से जायेंगे