भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तन्हा तन्हा रहते हो / मोहम्मद इरशाद
Kavita Kosh से
तन्हा तन्हा रहते हो
क्या ख़ुद से ही मिलते हो
तुम भी अब चुपके-चुपके
नाम किसी का लेते हो
कह भी दो जो कहना है
इतना किससे डरते हो
अब सबको मालूम हुआ
दम तुम किसका भरते हो
मैंने सुना है तुम अक़्सर
अपने आप से लड़ते हो
तुम भी ऐ ‘इरशाद’ सुनो
जिक्र ये किसका करते हो