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तन चला संग पर प्राण रहे जाते हैं / जानकीवल्लभ शास्त्री
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तन चला संग, पर प्राण रहे जाते हैं !
जिनको पाकर था बेसुध, मस्त हुआ मैं,
उगते ही उगते, देखो, अस्त हुआ मैं,
हूँ सौंप रहा, निष्ठुर ! न इन्हें ठुकराना,
मेरे दिल के अरमान रहे जाते हैं !
"किसके दुराव, लूँगा स्मृति चिह्न सभी से,
कर बढ़ा कहूँगा : भूल गये न अभी से !"
-था सोच रहा, अभिशाप भरे आ तब तक
-हे देव, अमर वरदान रहे जाते हैं !
आओ हमसब मिल आज एक स्वर गाएँ,
- रोते आएँ, पर गाते-गाते जाएँ !
मैं चला मृत्य की आँखों का आँसू बन,
मेरे जीवन के गान रहे जाते हैं !
('रूप-अरूप)