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तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप / चंदबरदाई
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तन तेज तरनि ज्यों घनह ओप .
प्रगटी किरनि धरि अग्नि कोप .
चन्दन सुलेप कस्तूर चित्र .
नभ कमल प्रगटी जनु किरन मित्र.
जनु अग्निं नग छवि तन विसाल .
रसना कि बैठी जनु भ्रमर व्याल .
मर्दन कपूर छबि अंग हंति .
सिर रची जानि बिभूति पंति .
कज्जल सुरेष रच नेन संति .
सूत उरग कमल जनु कोर पंति.
चंदन सुचित्र रूचि भाल रेष.
रजगन प्रकास तें अरुन भेष .
रोचन लिलाट सुभ मुदित मोद .
रवि बैठी अरुन जनु आनि गोद.
धूसरस भूर बनि बार सीस.
छबि बनी मुकुट जनु जटा ईस.
धमकन्त धरनि इत लत घात.
इक श्वास उड़त उपवनह पात.
विश्शीय चरित ए चंद भट्ट .
हर्षित हुलास मन में अघट्ट