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तन मधुबन सा रहता / राजेश गोयल
Kavita Kosh से
मेरा मन गंगा सा पावन, तन मधुबन सा रहता है।
तुम जब से मन में आये, मन पागल सा रहता है॥
पर हृदय की पीर,
सदा हरी मैंने।
पर हृदय का गीत,
सदा रचा मैंने॥
तुमने मनके तारांे को झंकार दिया, मन चन्दन सा रहता है।
तुम जब से मन में आये, मन पागल सा रहता है॥
चुपके चुपके सपनों मंे
तुम क्या आये।
सूने मन में अनगिन,
बहार ले आये॥
तुमने अपने घंूघट पट से क्या देखा, मन दर्पण सा रहता है।
तुम जब से मन में आये, मन पागल सा रहता है॥
इस मन पर न जाने,
कितनों का पहरा।
मन ने खाये धोखे,
कितना जख्म हरा॥
तुमने जबसे मन स्पर्श किया, मेरा मन कुन्दन सा रहता है।
तुम जब से मन में आय, मन पागल सा रहता है॥