तन शहर मन गांव का / रामजी यादव
यहां हर कोई स्म़तियों में पाता है सुख
वर्तमान में दुख और भविष्य में अंधेरा
कहीं लेना चाहता है ऐसा मकान जहां छोटे शहर जैसा पडोस हो और महानगर सी सुविधाएं
कि जाम न हो, मॉल हो, बिल्कुल पडोस में हवाई अडडा हो स्टेशन और अस्प्ाताल हो जहां बढिया एबुंलेंस हो
पिज्जा वगैरह तो जेनरेशन थ्री की जरूरत है
बिना दुलार और मनुहार के और कभी कभी बिना अच्छी तरह पीटे गए लमगोड की तरह
जब बडे होंगे बच्चे
सीखते हुए जब रूपये की भाषा, अनियंत्रित कमाएंगे रूपये
बनेंगे जब गुलामी के रूपक चमचमाते हुए
तब पिज्जा घर ही होगा सबसे अच्छी जगह
बहुत याद आती हैं गोबर के खादवाली स्वादिष्ट सब्जियां
यहां बरसों बरस बीत जाते हैं समोसे के भरवे में मिर्च की सुगंध पाए
सरदारजी पकाते हैं दोसा, बडे इडली और उत्पम
बना देते हैं सांभर की दाल मखानी
केवल शुदधता के कारण आठ रूपये के हो गये हैं समोसे
कम से कम चार वाले खोजने में हो जाएगी सांझ
कोटला मुबारकपुर, गौतम नगर सडक पर, देवली दुकान में
बंधुजी बंगाली मार्केट ,क़ष्ण नगर,रोहणी सेक्टर 3 ,महिपालपुर
बार्डर और दरियापुर गांव में
कहां कहां जाएंगे मदन कश्यप मित्रों को लिए-दिए
मदन जी को समोसे से इतनी ज्यादा है यारी कि
जगहों की जानकारी से चलने की तैयारी के बीच कोई होशियारी नहीं होती,
यह पटना की याद और दिल्ली में बजट का एक अच्छा संतुलन है
और मुहल्लेबाजी की थोडी सी खुशबू भी
एक योजक है- समोसा
समोसे से आम आदमी के रिश्ते के बीच
परमाणु बम की कोई जरूरत नहीं
लेकिन लपक कर रंजीत वर्मा कहते हैं कि एक बात जान जाइएगा
कि घुसा है साला साम्राज्यवाद हर जगह
अभी अभी कडाही से निकाले जाते समोसे में झांककर देखिए तो
आलू, मसाले,मिर्च और मैदे की हर संधि पर बैठे हैं
न जाने कितने कितने मुनाफाखोर साम्राज्यावादी
अब मुनाफाखोरी और परमाणु बम का रिश्ता किससे छिपा है
और फिडिपिडीज के सिरस्त्राण से अपने यूनानी केश झुंड पर फिराते हैं अत्यंत प्यार से हथेली
एक अर्थवान मुस्कान बिखेरते सपनीली आंखों और
धवल दंत पंक्तियों से तस्दीक करते हैं कुमार मुकुल - ठीक ठीक
चीजों का सपना और जिंदगी की चकाचौंध
ध्वसत कर रहे हैं गांव दर गांव
बिगड रहे हैं रिश्ते ओर आदमी के भीतर से पलायन कर रही है
मनुष्यता
एक खाली कंकाल की तरह चुपचाप है गांवों की
चालीस पार की स्त्रियां जो केवल गुस्से में मालूम देती हैं जीती जागती
लडकियां बडे अपनेपन से देखने को विवश हैं
ऐश्वर्या राय, कैटरीना कैफ और दीपिका पादुकोण की अदाएं
पिता से बिना बताए त्वचा के रंग की चिंताओं में उभ-चूभ हैं वे
नहीं समझ पा रही हैं कि कौन है जो देह की देहरी पर कदमों की आहट दिए चला जाता है दूर
टेलीविजन के पर्दे से निकल कर प्रेरणाएं
फैली हुई हैं बाजार के इस कोने से उस कोने तक
और शिवपुर बाजार में खडे होकर कहते हैं कतवारू
कि ऐसा समय तो ससुरा पहले कभी नहीं आया था
भर्र भर्र करते स्टार्ट होती है बडी मुश्किल से
पूरे बाजार को हडका देती है पुनवासी की लम्ब्रेटा
किसी और वाहन ने इनकार न किया था इतनी निर्ममता से
कि अब ओर नहीं और चिघाडता हो पागल हाथी की तरह
पार करना चाहते हैं कतवारू यह शिवपुर बाइपास की सडक
कि बिना आहट आती जाती हैं अनगिनत कारें
कि जैसे झुंड कोई चोरों का गुजर जाता हो चुपचाप बेपरवाह
खीज कर कहते हैं कतवारू कि धरती का सारा लोहा
निकाल कर जो बेच रहे हैं दिन दहाडे
बिना लोहे की धरती का सत्वहीन गेहूं
खाकर प्राण बचाने वाले मनुष्य की कीमत भूल गए हैं
ये लोहाचोर टाटा, मित्तल,सिंहानिया,जिंदल,अडानी और इनके सिपाही
गुस्से में कतवारू अपने आप से ही कहते हैं
बचाना होगा धरती के भीतर के लोहे को
ताकि बचे सत्व गेहूं का
ताकि बची रहे आत्मा
और बच सके मनुष्य पूरा का पूरा मजबूत और कद्वावर
ताकि सडक पार कर सके इत्मीनान से मनुष्यता।