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तपते सहरा में जैसे / तेजेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
हवा में आज ये तुमसे जो मुलाकात हई
तपते सहरा में जैसे प्यार की बरसात हुई
पहली मुस्कान तेरी आज भी है याद मुझे
ऐसा दिन निकला जिसकी फिर न कभी रात हुई
तेरा मासूम सा चेहरा मुझे तडपाता है
न कभी बुझ सके ऐसी है मेरी प्यास हुई
तेरे हालात की मजबूरियों से वाकिफ़ हूँ
देखता दूर से तड़पूं, भला क्या बात हुई
पूजता हूं तुम्हें मैं आज भी चाहूं दिल से
रब से मांगूंगा न कुछ, गर तू मेरे साथ हुई