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तपस्या / अशोक अंजुम

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बापू
आज फिर
दारू पीकर आएगा
माँ को पीटेगा
माँ सब सह जाएगी
पूर्ववत
पत्थर है माँ!
आज छुटके ने
पी थी बीड़ी
पीट रही है
माँ
ज्वार थम चुकने पर
माँ फूट-फूट कर रोती है
छुटके को
चिपकाए छाती से
पिघल रही है माँ
मोम-सी!