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तपिश / सुतपा सेनगुप्ता

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1.

कॉफ़ी के कप के पास
मेरा दिल छोड़ गया है
तुम्हारे नश्वर दाग़,
मुझे विश्वास था कि
झुलसकर कुछ तो वफ़ा हासिल हुई होगी
नहीं, अब वह यक़ीन नहीं रहा।
ऐसी ग़लती को जिसने ग़लती कहा
मैं उसके तन को डँसना चाहती हूँ।

2.

आवाज़ों से घिरी
लकड़ी की इस टेबिल के पास
आज आकर मैंने देखा कि
मेरे ही साज में कप-प्लेट
महँगे पोर्सेलिन में जगमगा उठे हैं
छुरी-काँटों में झिलमिलाता है
हीरों का चूरा
और मुझे खाकर तृप्त हो उठे हैं
प्रेमी के दाँत!

3.

प्यार की ख़ातिर
अपने बालों में
मैंने आरी की कंघी लगा रखी है
इसलिए जब जड़ से उखड़कर
मैं टुकड़ा-टुकड़ा गिर रही थी
सती के पीठस्थानों पर
वह कंघी उन काले बालों पर
छिड़क रही थी लहू के चुम्बन!

4.

थक कर पड़ी हुई हूँ
बिस्तर के पास,
मेरी वेणी से बँधा तुम्हारा दिल ...
गहरी नींद की ताल पर
झूमता हुआ ...
ख़्वाहिश होती है कि
होंठों से चूमकर
दाँतों के जुनून से सोख लूँ
फेफड़ों से वह थोड़ी-सी हवा
और इश्क़ फ़रमाऊँ फिर से!

मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी