तप रहे हैं शब्द मन के
कुछ नई रचना बनेगी
मौन में भी शब्द हैं
मैं मौन को ही पढ़ रहा
आँधियाँ निश्चित उठेगी
मौन हो पथ गढ़ रहा
बात जो आक्रोश की है
फिर कथानक में ढलेगी
वक्त ने दी है चुनौती
नाव है मझधार में
नाव में हैं छिद्र सौ-सौ
ध्येय है उस पार में
हौसले से मुश्किलों को
झेलने नौका बढ़ेगी
नाग चंदन से सटे हैं
मौन है वातावरण
सूर्य भी दिखता नहीं अब
है तमस का आवरण
इस अमावस को मिटाने
रात धू-धू कर जलेगी
रचनाकाल-08 फरवरी 2016