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तबाही / शंख घोष / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
हे ईश्वर !
क्या तबाह कर देने वाले रास्ते पर
चला था मैं ?
मेरी तबाही के
ज़िम्मेदार हो तुम ही
पूरी तरह से
अपने दिल की आपा-धापी के बीच
तुम्हारी बड़ी-सी मुट्ठी को पकड़कर
मैंने पुण्य कटोरे में भरकर रखा था
शाम के समय
पर तुम्हारा कहना था
कि पुण्य
बिखर जाते हैं ... बिखर जाते हैं ...
मेरी तबाही के ज़िम्मेदार
तुम ही हो
मेर्रे भगवान !
मूल बांग्ला से अनुवाद : अनिल जनविजय