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तब इच्छा थी / सुनीता जैन

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तब इच्छा थी
बात हो
तुम पूछो, ‘मेरी हो न?’
या कि फिर,
‘कैसी हो?’

वह क्षण
टल गया
या किसी अन्य
लिलार जड़ गया

जब तक लौटे तुम्हारे स्वर-
सीप-सा मेरा मन
सीप-सा मेरा मन
दो फाँक होकर
खुल गया