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तब एक कविता लिखी गई होगी / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
तब
रात्रि के देवता ने करवट ली होगी
और आसमान में
एक साथ हिनहिनाए होंगे
चाँदी के घोड़े
तब
एक बैल शरीर झटक कर खड़ा हो गया होगा
और एक ने
सिर्फ़ हवा को सूँघ कर ही
गरदन नीची कर दी होगी
तब एक चूल्हा धुंधुआया होगा
और एक लकड़ी
मुँह बिदकाए बिना गुटक गई होगी
लोहे का कसैला स्वाद
तब
एक बीज ज़मीन के भीतर तक गया होगा
और एक सपना अँकुराया होगा
नींद से एकदम बाहर
तब एक आदमी ने आकाश की तरफ़ देखा होगा
और एक औरत
धरती में छुपा आई होगी
अपने बालों का मैल
तब
एक कविता लिखी गई होगी
एक कौआ उड़ा होगा
और एक गाय की पीली दाढ़ में
भर गया होगा
नरम घास का रस।