भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तब जवाब दुर्गा दइ छै / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तब जवाब दुर्गा दै छै
सुनऽ सुनऽ जादूगर राजा
जब नै सत हमरा से करबै
तब नै हम अपन बात कहबऽ
हमरा संगमे सत राजा कऽदियै हौ
एतबे वचनियाँ राजा सुनैय
दुर्गा संगमे सत राजा करैय
तबे जवाब राजा के कहै छै
राज महिसौथामे मोती बसै छै
जाति दुसाध आय कुल कहबै छै
ओकरे त्रिया कुसमावती
ओकरे हरि के जादूपुरमे लबिलियौ हौ
एतबे वचनियाँ राजा सुनै छै
उनटा राजा धरतीमे गिरै छै
जो जो बेइमनवी भल नै हेतै
सत करा के धोखा देलही
तब जवाब देवी दुर्गा दै छै
सुनि ले बेटा राजा दरबी
तोरा कहै छी दिल के वार्त्ता
योगी बनि के ड्योढ़ीमे जइहऽ
कुसमा हाथ से भीक्षा लिअ
सत करा कुसमा से लिहऽ
भीक्षा दैलय रेखा टपतै
हरि के कुसमा ड्योढ़ी से लबियौ
हरि के कुसमा हमरा तू देखादियौ रौ।।